प्रोजेरिया: एक अजब बीमारी

प्रोजेरिया: एक अजब बीमारी

ऐसे ही इंसान में एक बीमारी हो जाती है, जिसमें यह छोटी उम्र में ही बुजुर्ग जैसा लगने लगता है। यह ‘प्रोजेरिया’ कहलाती है।

कुदरत कैसे-कैसे खेल खेलती रहती है। आज तक कोई नहीं जान पाया। उसकी कलाकारी को कोई भी नहीं समझ पाया। इंसान चाहे कितना पढ़-लिख जाये, लेकिन प्रकृति किसी भी कदम को समझने में कहीं भी सफल नहीं हो पाता। जब फेल हो जाता है तो हार मानकर कह देता है ‘कुछ समझ में नहीं आ रहा है।’

प्रकृति किसी को लम्बा तो दूसरे को ठिगना, तीसरे को गहरा काला तो उसकी तुलना में अगले को निहायत गोरा। एक को इतना मोटा कि बैठे-बैठे ही सांस लेनी मुश्किल तो उसके विपरीत एक और को बेहद पतला कि लगे जैसे हवा में उड़ जायेगा। ऐसे ही इंसान में एक बीमारी हो जाती है, जिसमें यह छोटी उम्र में ही बुजुर्ग जैसा लगने लगता है। यह ‘प्रेजेरिया’ कहलाती है।

आमतौर पर यह भयानक बीमारी वंशानुगत होती है। इस बीमारी वाला व्यक्ति जिन्दा जन्म लेने वालों 8 मिलियन में से एक होता है। सन् 1886 में इसका पता चला था। इसे दूसरे नाम हचिंसन गिल्फोर्ड बीमारी से भी पहचाना जाता है।

प्रोजेरिया बीमार को ऐसे पहचान सकते हैं:

  • मानसिक उम्र उतनी ही, लेकिन शारीरिक उम्र बढ़ती जाती है। मतलब बहुत कम उम्र में ही बुजुर्गों जैसे लक्षण व हाव-भाव दिखने लगते हैं।
  • 12-13 वर्ष उम्र में पहुंचते-पहुंचते 64-65 वर्ष उम्र वाले जैसा दिखाई पड़ने लगता है।
  • शरीर से चर्बी कम होती जाती है।
  • हड्डियों का विकास रूक-सा जाता है।
  • शारीरिक विकास अधिक होता है।
  • गंजापन।
  • चेहरा छोटा, जबड़ा भी छोटा होता जाता है।
  • शरीर की खाल में बुजुर्गों जैसी झुर्रियां पड़ती जाती है।
  • खून नलियों में बुजुर्गों की तरह कड़ापन (ऐथेरो स्क्लीरोसिस)।
  • त्वचा रोग (स्क्लेरोडर्मा)।
  • नाक पिचकी हुई।
  • दिल की बीमारियां भी हो सकती हैं।

प्रोजेरिया रोगी का इलाज ऐसे हो सकता है:

  • इसका इलाज मुश्किल हे लेकिन फिर भी हार्मोनिक थैरोपी से थोड़ा बहुत लाभ हो सकता है।
  • होम्योपैथिक किसी विशेष बीमारी का इलाज न कर लक्षणों के आधार पर व्यक्ति की पीड़ा में मानसिक व शारीरिक तौर पर लाभ पहुंचाती है। समान लक्षणों के आधार पर काफी हद तक लाभ पहुंचा सकती है जैसे:
    • उम्र से अधिक लगना-बैरायटा कार्ब, कैल्के, फॉस आदि।
    • गंजापन- नैट्रम म्यौर, एसिड फॉस आदि।
    • झुर्रीदार खाल बुजुर्गों जैसी-एब्रोटे, क्रियोजोट आदि।
    • दिली बीमारी- कैक्टस, क्रैटेगस आदि।
    • खून की कमी-फैरम फॉस, लिसिथिन आदि।
  • रोगी की मृत्यु – लगभग दस वर्ष उम्र से कम समय में दिली बीमारी से हो सकता है।

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