होली एक ओर तो बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनायी जाती है तो दूसरी ओर रंगों तथा हास्य के पर्व के रूप में। रंगों के बिना होली की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विभिन्न रंगों से सराबोर हो जाना चाहते हैं। होली के रंगों का आकर्षण ही ऐसा होता है कि हम न केवल दूसरों को ही नीले, पीले हरे, गुलाबी रंगों में रंगे देखना चाहते हैं अपितु स्वयं भी इन रंगों में रंग जाना चाहते हैं, रंगीन पानी में तर-ब-तर हो जाना चाहते हैं।
रंग हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। रंगों का हमारे मनोभावों पर और हमारे मनोभावों का हमारे शरीर पर गहरा असर पड़ता है। हर व्यक्ति का अपना एक पसंदीदा रंग होता है जिसका विभिन्न रूपों में प्रयोग कर उसे खुशी मिलती है। फाग या रंगोत्सव उसे यह अवसर प्रदान करता है। होली के अवसर पर हर व्यक्ति अपने पसंदीदा रंग खरीदकर दूसरों को लगाता है जिससे उसे आनंद की अनुभूति होती है और यह आनंदानुभूति अनेक व्याधियों के उपचार में सहायक होती है।
रंगों के खतरे
होली पर रंगों का इस्तेमाल कई प्रकार से किया जाता है। गुलाल या अबीर के रूप में सूखा रंग एक दूसरे के चेहरे और बदन पर मलते हैं अथवा रंगीन पानी से एक दूसरे को भिगोते हैं। नंदगांव और बरसाने की लट्ठमार होली के साथ-साथ ब्रज की फूलों की होली भी बहुत प्रसिध्द है। फूलों की होली में रंगों की बजाय विभिन्न फूलों की रंग-बिरंगी व सुगंधित पंखुड़ियों की एक दूसरे पर वर्षा की जाती है। फूलों की होली के अतिरिक्त एक दूसरे के मस्तिष्क पर सुगंधित वनस्पतियों अथवा अन्य द्रव्यों का लेप लगाने का प्रचलन भी हमारे यहां देखने को मिलता है। होली से पहले ही बाजारों में इन विभिन्न पदार्थों और रंगों की दुकानें सज जाती हैं।
समस्या ये है कि आजकल बाजार में मिलने वाले होली के ये रंग प्राय: अच्छे नहीं होते क्योंकि इन्हें हानिकारक रसायनों से बनाया जाता है। इन रंगों से होली खेलने के बाद कई लोगों की स्किन, आंखें व सिर के बाल भी बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। कई शोधों से पता चलता है कि कई ऐसे रंगों से कैंसर तक होने का खतरा बना रहता है। अत: समझदारी इसी में है कि इन खतरनाक रसायनों से बनाए गए रंगों से तौबा कर ली जाए। तो क्या फिर रंगों के बिना ही रंगों के इस त्यौहार को मनाएं? नहीं, ऐसा नहीं है। आप होली मनाएं और खूबसूरत रंगों के साथ होली मनाएं लेकिन इन रंगों को आप खुद अपने हाथों से तैयार करें।
पहले लोग खुद अपने घरों में होली के रंग तैयार कर लेते थे। आज यह काम थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। यदि हम सिंथेटिक रंगों के दुष्प्रभाव से बचना चाहते हैं तो हमें अपने होली खेलने के रंग स्वयं बनाने के लिये तत्पर होना होगा। होली के रंग बनाने के लिये कुछ चीजें जैसे सब्जियां, मसाले वगैरा तो हमें अपने रसोई घर से ही मिल सकती है। हल्दी पाउडर, चंदन पाउडर, सूखा आंवला, कत्था, केसर, चाय की पत्ती, मेंहदी की पत्तियों का पाउडर, बेसन, मैदा, चावल का आटा, मुल्तानी पाउडर आदि पदार्थों से कई सूखे अथवा गीले रंग तैयार किये जा सकते हैं। जो चीजें घर पर उपलब्ध नहीं हो सकतीं उन्हें बाजार से खरीदा जा सकता है। हल्दी पाउडर या गैंदे अथवा अमलतास के फूलों की सूखी पंखुड़ियों को पीसकर पीला रंग बनाया जा सकता है। त्वचा के लिये उत्तम रक्त चंदन पाउडर या हिबिस्कस अथवा गुड़हल के फूलों से लाल रंग तैयार किया जाता है। लाल अनार के छिलकों अथवा लाल गुलाब के फूलों की सूखी पंखुड़ियों को पानी में उबालने से सुगंधित लाल रंग तैयार हो जाता है। पलाश, ढाक अथवा टेसू के फूलों से बना रंग होली खेलने वालों का सबसे पसंदीदा रंग है।
प्राकृतिक रंग
हरा रंग बनाने के लिये मेंहदी की पत्तियों अथवा गुलमोहर के पेड़ की पत्तियों का पाउडर इस्तेमाल किया जा सकता है अथवा पालक, धनिया, पुदीना अथवा अन्य हरे रंग की पत्तियों का पेस्ट बनाकर पानी में मिलाया जा सकता है। नील के पौधों की पत्तियों अथवा जैकेरेंडा का फूलों से भी नीला रंग तैयार हो जाता है। इस तरह और भी कई हर्बल रंग तैयार किये जा सकते हैं।
इस तरह से तैयार प्राकृतिक रंग न केवल सुरक्षित होते हैं अपितु शरीर के लिये लाभदायक भी होते हैं। क्योंकि इनका निर्माण विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों अथवा वनस्पतियों और फल-फूलों से किया जाता है इसलिए इनका उपचारक प्रभाव भी हमारी शरीर पर पड़ता है। ये प्राकृतिक सुगंध से भरपूर होते हैं अत: मन को भाते हैं। इनकी गंध भी हमारे उपचार में सहायक होती है अर्थात् ये एरोमाथैरेपी का रोल भी अदा करते हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ ये है कि ये हमारे पर्यावरण को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाते।
कहा गया है : दर्दे-सर के वास्ते चंदन लगाना है मुफीद, उसको घिसना और लगाना दर्दे-सर ये भी तो है। इस प्रकार के हर्बल या प्राकृतिक रंगों को बनाना आज के जमाने में सचमुच दर्दे-सर अथवा एक बहुत बड़ा झमेला ही है लेकिन इस प्रक्रिया में न केवल हमारे पर्यावरण का बचाव है अपितु इसमें हमारे स्वयं के स्वास्थ्य की रक्षा भी विद्यमान है। तो आइये संकल्प ले कि स्वस्थ रहने के लिए हम सब होली अवश्य खेलें पर खेलें केवल प्राकृतिक रंगों से।