मोटे स्थूल व्यक्तियों को शीत ऋतु में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्षा ऋतु के बाद शीत ऋतु में ठंडी हवाओं से अंगों में जकड़न, घुटनों में दर्द व खांसी के साथ श्वांस रोग का बढ़ना एक समस्या है।
महर्षि चरक ने कहा है, ‘धर्मार्थ काममोक्षाणाम् आरोग्यम् मूल मुत्तनम’ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति का मूल आधार उत्तम स्वास्थ्य ही है। बिना स्वस्थ शरीर के जीवन की किसी भी कामना की पूर्ति संभव नहीं है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए शीत ऋतु किसी वरदान से कम नहीं होती। शरद ऋतु का प्रारंभ ग्रीष्म तथा वर्षा के साथ संधिकाल के रूप में होता है। दीवाली के जाते ही शरद ऋतु का आगमन हो जाता है, जो 25 दिसम्बर तक गुलाबी ठंड के रूप में शुरू हो जाती है। कभी-कभी वर्षा के साथ शीत लहरें और कोहरे से ठंड का प्रकोप बढ़ जाता है तो कभी तीव्र धूप से गर्मी का अनुभव भी होता है, अत: ऐसे समय में स्वास्थ्य की दृष्टि से खानपान में सावधानी की बहुत आवश्यकता होती है।
ऋतु
आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु की संचित वायु वर्षा ऋतु के नए जल के प्रभाव से नष्ट होकर पित्त को संचित करती है। यह पित्त शरद ऋतु में प्रकुपित हो जाता है। हम यह भी कह सकते हैं कि पित्त के प्रकुपित हो जाने से जठराग्नि तेज हो जाती है। फलस्वरूप शरीर का तापमान भी स्वत: ही बढ़ जाता है। इस तीव्र जठराग्नि को शांत करने के लिए इस मौसम में गाजर, टमाटर, मूली, गोभी, शलजम, चुकंदर, पालक, बथुआ, मेथी जैसी सब्जियां भरपूर मात्रा में लेनी चाहिए। पित्त को शांत करने के लिए आंवला, शकरकंद, ताजा गुड़, अमरूद, पिंडखजूर, गन्ना इत्यादि वस्तुओं का सेवन भी लाभप्रद है। इस मौसम में उपरोक्त पदार्थों के सेवन के साथ गर्म केसर युक्त दूध, मलाई तथा रबड़ी का भी सेवन करना लाभप्रद रहता है।
आहार-विहार
आहार-विहार की दृष्टि से यह मौसम चूंकि शरीर की तंदरूस्ती के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, अत: सुबह उठकर शौच आदि दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर हल्का-फुल्का शारीरिक व्यायाम और तेल मालिश करना स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। इस मौसम में अचानक तेज जुकाम, नाक से पानी आना, छींकें आना, खांसी जैसे रोग हो जाते हैं, जिन्हें अदरक व तुलसी के रस को शहद के साथ गर्म करके दिन में दो-दो बार लेने से ठीक किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर तुलसी, अदरक, दालचीनी व काली मिर्च की चाय भी बहुत उपयोगी होती है। जुकाम के साथ खांसी आने पर गले में खरखराहट जैसे लक्षणों में सौंठ, काली मिर्च, पीपल समान मात्रा में मिलाकर दो-तीन बार लेने से रोगमुक्त हो सकते हैं। कब्ज की स्थिति में भरपूर अमरूद का सेवन करें या छोटी हरड़ का चूर्ण रात को लें।
सावधानियां
पित्त प्रकृति के व्यक्ति के लिए जहां शरद ऋतु वरदान होती है, वहीं कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए यह अभिशाप होती है अर्थात् मोटे स्थूल व्यक्तियों को शीत ऋतु में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्षा ऋतु के बाद शीत ऋतु में ठंडी हवाओं से अंगों में जकड़न, घुटनों में दर्द व खांसी के साथ श्वांस रोग का बढ़ना एक समस्या है। अत: ऐसे लोगों को ऊनी कपड़ों से अपने आप को ढके रहना चाहिए। श्वांस बढ़ने पर छाती में भारीपन का आभास होते ही सरसों का तेल, सेंधा नमक व कपूर गर्म करके तुरंत मालिश कर लेनी चाहिए।
आधुनिक परिवेश की व्यस्ततम जिंदगी में रात को जल्दी सोना व सुबह जल्दी उठना संभव नहीं होता। दरअसल रात में काम करने वालों का आहार-विहार भी प्रतिकूल होता है। ऐसी स्थिति में किसी भी समय सोने से पहले दूध में मुनक्का डालकर लें और सुबह उठने के तुरंत बाद 1-3 गिलास ठंडा पानी पीएं। मोटे व्यक्ति गर्म पानी में नींबू व शहद का प्रयोग करें। इस प्रक्रिया से न केवल पेट साफ होगा बल्कि मोटापा भी कम होता जाएगा। दिन में किसी भी समय गाजर, मूली, टमाटर तथा अमरूद का सलाद, सूप तथा जूस स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।