अक्सर आधुनिक युग में श्राध्द की नाम आते ही इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती हैं। प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राध्दों की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? क्या यह हवाला सिस्टम है कि पृथ्वी लोक में दिया और परलोक में मिल गया? ऐसे कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर तर्क से देने में कठिन होते हैं फिर भी उनका औचित्य अवश्य होता है।
आप अपने सुपुत्र से कभी पूछें कि उसके दादा-दादीजी या नाना-नानी जी का क्या नाम है। आज के युग में 90 प्रतिशत बच्चे या तो सिर खुजलाने लग जाते हैं या ऐ, ऐ करने लग जाते हैं। परदादा का नाम तो रहने ही दें। संभव है वह आपके पिताजी का नाम कुछ न कुछ बता दे और आप मेहमानों के आगे खिसिया के बगलें झांकते रह जाएं। यदि आप चाहते हैं कि आपका नाम आपको पोता भी जाने तो आप श्राध्द के महत्व को समझें।
सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यवहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वाह अवश्य करें। हम पश्चिमी सभ्यता की नकल कर के मदर डे, फादर डे, सिस्टर डे, वूमन डे, वेलेंटाइन डे, आदि पर ग्रीटिंग कार्ड या गिफ्ट देकर डे मना लेते हैं। उसके पीछे निहित भावना या उद्देश्य को अनदेखा कर देते हैं। परंतु श्राध्दकर्म का एक समुचित उद्देश्य है जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है। श्राध्द, आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये 15 दिन होते हैं।
इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुम्ब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वाह करें।
अन्य धर्मों में भी याद किया जाता है पूर्वजों को
ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है, ईसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है जिसमें सामूहिक भोज का आयोजन होता है। इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ने का रिवाज है। बौध्द धर्म में भी ऐसे कई प्रावधान हैं। तिब्बत में इसे तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिमी समाज में मोमबत्ती प्रज्ज्वलित करने की प्रथा है।
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस तक का समय श्राध्द या महालय पक्ष कहलाता है। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति एवं श्रध्दापूर्वक की गयी क्रिया का नाम ही श्राध्द है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष श्राध्द के लिये तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिये इसे ‘कनागत’ भी कहते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राध्द अमावस को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राध्द भी कहते हैं। यह एक श्रध्दा प्रधान पर्व है। जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनों आकाश की ओर मुख करके, दोनों हाथों द्वारा आह्वान करेक पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राध्द ऐसे दिवस हैं जिनका उद्देश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है।
दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रध्दा के प्रतीक हैं। पर वे इष्टदेव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं। ऐसा अक्सर फिल्म उद्योग या राजनीति में होता है जिसे किसी भी प्रकार शास्त्रसम्मत नहीं माना जा सकता। हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं चलती रहें। श्राध्दकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता। पितरों के प्रति श्रध्दा ही श्राध्द कर्म है। भगवान राम ने भी श्रध्दाभाव से तर्पण किया था।
श्राध्द के कुछ मुख्य बिंदु
- सूर्य कन्यागत होने से नीच राशि की ओर अग्रसर होता है, अत: मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिये।
- ब्रह्मचर्य पालन, व्याभिचार दुष्कर्म न करें। न ही शेव श्रृंगार करें।
- चंद्र धरती के सबसे निकट होता है और पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं।
- तीन पीढ़ी तक श्राध्द किया जा सकता है।
- ज्येष्ठ पुत्र या पौत्र करे तर्पण। महिलाएं भी कर सकती हैं।
- पूर्वजों के निधन के प्रथम वर्ष श्राध्द नहीं करें।
- रात्रि के समय, अपने जन्म दिन पर, भी न करें।
- तर्पण करते समय मुंह दक्षिण की ओर रखना चाहिये।
- कुछ लोग अपने जीवित रहते ही अपना श्राध्द कर्म निपटा जाते हैं।
पितृ दोष में अवश्य करें श्राध्द
पितृ दोष के कारण निम्न फल रहते हैं।
- संतान न होना
- धन हानि
- गृह क्लेश
- दरिद्रता
- मुकदमे
- कन्या का विवाह न होना
- घर में हर समय बीमारी
- नुकसान पर नुकसान
- धोखे
- दुर्घटनाएं
- शुभ कार्यों में विघ्न
श्राध्द के 4 मुख्य कर्म
- तर्पण: दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पितरों को नित्य अर्पित करें।
- पिंडदान: चावल या जौ के पिंडदान, भूखों को भोजन।
- वस्त्रदान: निर्धनों को वस्त्र दें।
- दक्षिणा: भोजन के बाद दक्षिणा एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं।
कैसे करें श्राध्द
जिस तिथि को किसी पूर्वज का निधन हुआ हो पितृ पक्ष में उसी तिथि को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य श्राध्द करें। इससे पूर्व किसी सुयोग्य कर्मकांडों से तर्पण करा लिया जाए। सात्विक भोजन ही स्वयं किया जाए। यदि किसी कारण ब्राह्मण या कर्मकांडी उपलब्ध न हों तो आप स्वयं किसी नदी या तीर्थ स्थल या उचित स्थान पर भगवान सूर्य को ही पंडित मानकर पितरों के मोक्ष के लिये पिंडदान करें।
श्राध्द सामग्री
सर्प-सर्पिनी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल, माला। पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें सफेद कपड़े पर सामग्री रखें। 108 बार माला से जाप करें या सुख शांति, समृध्दि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पितरों से प्रार्थना करें। हाथ में जौ, तिल, चावल, लेकर जल के साथ पितृ आत्माओं का नाम लेकर भगवान सूर्य को अर्पित करें। जल में तिल डाल के 7 या 11 बार अंजलि दें। दीप जला कर अक्षत, पुष्प, मिष्ठान भी चढ़ाएं। पितरों के नाम का एक-एक नारियल चढ़ाएं। श्राध्दकर्ता को सिले हुए वस्त्रों की बजाय धोती लपेटनी चाहिये। यदि परिवार में पुरुष नहीं हैं तो महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं। शेष सामग्री को पोटली में बांधकर प्रवाहित कर दें, हलुवा, खीर, भोजन, ब्राह्मण, निर्धन, गाय, कुत्ते, पक्षी को दें।