वृक्ष व वनस्पति रूद्र के रूप में मानी गयी है, क्योंकि वे वैषैली व हानिकारक हवा (गैस) पीकर प्राणवायु प्रदान करते हैं। अत: पेड़ पौधों को सींचना, उन्हें जल प्रदान करना साक्षात महादेव शिव (रुद्र) का जलाभिषेक करना है। आखिर एक वृक्ष सौ पुत्र के समान यूँ ही नहीं कहा गया है.
सनातन धर्म संस्कृति में प्रकृति पूजन सृष्टि के प्रारंभ से ही चल रहा है। सदा सत्य पर आधारित सदा नूतन रहने वाला धर्म है सनातन, जिसमें प्रकृति और पुरुष दोनों की आराधना होती है। इसमें पांच तत्वों आकाश, जल, पावक, पृथ्वी (भूमि), वायु को भगवान स्वरूप माना जाता है, शिव तत्व माना जाता है और इनकी पूजा होती है। प्रत्येक जीव-जंतु प्राणी में ब्रह्म का दर्शन करने-कराने वाला धर्म है सनातन धर्म। इसे ही अब हिन्दू मान्यता, हिन्दू धर्म, हिन्दू जीवन शैली, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू परंपरा कहा जाता है।
वृक्ष रूद्र के रूप में
भारतीय संस्कृति, भारतीय मान्यता, भारतीय परंपरा भी इसे ही माना जा रहा है। इसमें वृक्ष, पेड़, पौधों को विशिष्ट महत्ता प्रदान की गयी है। वृक्ष हमारी संस्कृति के संरक्षक माने जाते हैं। वृक्षों, वनों, पौधों और पत्तों तक को देव तुल्य मानकर उनकी पूजा की जाती है। देवालयों के परिसर में स्थित वृक्षों को भी देवता मानकर पूजा जाता है। कई वृक्षों को तो सीधे महत्वपूर्ण देवता मानकर उनकी पूजा होती है। जैसे- पीपल, वट (बड़ या बरगद), अशोक, आम, तुलसी, कदम्ब, बेल (बिल्व), पलाश, आक, केला, आंवला, हरसिंगर, कमल, कैथ, इमली, अनार, गुगल, नीम, बहेड़ा, हरैया, करंज, जामुन आदि। इनमें औषधीय गुणों के साथ-साथ पर्यावरण को भी स्वच्छ व ठीक रखने की अपार क्षमता है। ये अनेक प्रकार के दोषों का भी निवारण करते हैं। मनुष्य के दैनिक जीवन में इनकी अत्यधिक उपयोगिता भी है।
धर्मो रक्षति रक्षित:, गावों रक्षति रक्षित:, प्रकृति रक्षति रक्षित:, वृक्षों रक्षति रक्षित:।
वृक्ष व वनस्पति रूद्र के रूप में मानी गयी है, क्योंकि वे वैषैली व हानिकारक हवा (गैस) पीकर प्राणवायु प्रदान करते हैं। अत: पेड़ पौधों को सींचना, उन्हें जल प्रदान करना साक्षात महादेव शिव (रुद्र) का जलाभिषेक करना है।
वृक्षों, पेड़, पौधो, झाड़ियों (हर्ब-सर्ब) के गुण आदि का विशेष वर्णन आयुर्वेद ग्रंथों में है। हमारे धर्म शास्त्रों में महामनीषियों, ऋषि मुनियों में वापी, पाली और जलाशयों का बनाकर वहां वृक्षारोपण करना किसी यज्ञ के पुण्य से कम नहीं माना है। हमारे हवन-यज्ञ आदि में समिधा का प्रयोग होता है, वह भी वृक्षों की देन है, जिसे पवित्र मानकर उपयोग किया जाता है।
विष्णु पुराण में बतलाया गया है कि एक सौ पुत्रों की प्राप्ति से भी बढ़कर एक वृक्ष लगाना और उसका पालन-पोषण करना है, इससे व्यक्ति पुण्य प्राप्ति करता है। चरक संहिता में प्राकृतिक औषधियों व जड़ी-बूटियों का चिकित्सकीय दृष्टि से उपयोग बतलाया गया है। मत्स्य पुराण में दस पुत्रों, बावड़ियों, तालाबों एवं पुत्रों से बढ़कर एक वृक्ष को माना गया है। ब्रह्माण्ड पुराण में लक्ष्मी को कदम्ब वन वासिनी कहा गया है। कदम्ब के पुण्यों से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पदम् पुराण में भगवान विष्णु को पीपल वृक्ष, भगवान शंकर को वटवृक्ष और ब्रह्माजी को पलाश वृक्ष के रूप में प्रतिपादित किया गया है। वृहदारण्यक उपनिषद में पुरुष को वृक्ष का स्वरूप माना गया है। प्राचीन भारतीय राजवंश अपने गोत्रोच्चार में गोत्र, प्रबर, वेद, नदी आदि के साथ अपने मान्य व पूज्य वृक्ष का नाम भी बोलते थे, जो उनके कुल का द्योतक होता था।
वृक्ष = ब्रह्म स्वरूप
शास्त्रानुसार ईशान कोण में आंवला नैऋत्य कोण में इमली, आग्नेय कोण में अनार, वायव्य कोण में बेल, उत्तर दिशा में कैथ व वाकूड़, पूरब में बड़ (बरगद), दक्षिण दिशा में गुगल और गुलाब तथा पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष लगाना या रहना शुभ माना गया है। तुलसी को आंगन में उत्तर-पश्चिम कोण में प्रांगण या बाहर उत्तर की ओर लगाना या रखना ठीक है। पूरब दिशा में भी रहना कल्याणकारी है।
माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये घर में श्वेत आक (मदार) केला, आंवला, हरसिंगार, अशोक, कमल आदि को रोपण (लगाना) शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। घर-मकान के सामने शमी पेड़ को लगाना व पूजन करना कई कठिनाइयों का हरण करता है। कदम्ब के वृक्ष के नीचे परिवार सहित भोजन किया जाए तो परिवार फलत-फूलता है। शिवालय शिवमंदिर के निकट बेल (बिल्व वृक्ष) लगाने से उसका पूजन हो जाता है और पत्तों (त्रिपत्र) को शिवार्पण करने से अनके लाभ होता है
तुलसी एकादशी के दिन तुलसी के पौधों की अपनी पुत्री के समान विवाह की रीति संपन्न की जाती है। शास्त्रवेत्ताओं का कथन है कि पथ के किनारे वृक्षारोपण करने से दुर्गम फल की प्राप्ति होती है, जो फल अग्निहोत्र से भी उपलब्ध नहीं होता, वह मार्ग के किनारे वृक्ष लगाने से मिल जाता है। वृक्ष पूजा की परंपरा में कार्तिक मास में महिलाएं पीपल व वटवृक्ष की पूजा कर पानी सींचती हैं तो पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। तुलसी को विष्णु प्रिया, केला को वृहस्पति और संतानदाता तथा पीपल को ब्रह्मा, विष्णु महेश के निवास के रूप में पूजा जाता है। चंदन भक्त और भगवान के माथे की शोभा है। भाल पर चंदन घिसकर लगाने से अदभुत शांति मिलती है। सब कार्य सिध्द होते हैं।
कार्तिक पक्ष की शुक्ल नवमी को आंवला नवमी कहते हैं, इस दिन आंवला की विशेष पूजा होती है। पीपल वृक्ष को नियमपूर्वक जल चढ़ाने से पुत्र की प्राप्ति होती है और शनि का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है। चैत्र कृष्ण दशमी को दशामाता कहा जाता है, महिलाएं इस दिन पीपल की पूजा करती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा को स्त्रियां वटसावित्री का व्रत रखकर वटवृक्ष को जल सींचते हैं। वट सावित्री दिवस को बरगद की विशेष पूजा स्त्रियां करती हैं। हरियाली अमावस्या और श्रीपंचमी (वसंत पंचमी) आदि पर्वों पर व्रत उपवास के साथ वनस्पति पूजा होती है। छत्तीसगढ़ के रतनपुर क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में आम के वृक्ष से आम तोड़ने से पहले उसके विवाह की विधि संपन्न की जाती है।
पीपल, बरगद को ब्रह्म स्वरूप ब्राह्मण माना जाता है। उन्हें काटना ब्रह्म हत्या के समान माना जाता है। जिन वृक्षों पर पक्षियों के घोंसले हों तथा देवालय और श्मशान की भूमि पर लगे वृक्ष जैसे बड़, पीपल, बहेड़ा, हरड़, नीम, पलाश आदि को काटना शास्त्रानुकूल नहीं है। महुआ वृक्ष को काटना पाप का भागी बनना है। बहुत आवश्यक हो तब इन वृक्षों को दूसरे स्थान पर लगाने की व्यवस्था करें। पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिये, सुख समृध्दि प्राप्ति हेतु व व्याधियों से मुक्ति हेतु वृक्षरोपण करना आवश्यक है।