हमारे देश में throat infection (गला संक्रमण) एक मुख्य स्वास्थ्य समस्या है। अन्य रोगों की तरह कुछ समय बीमारियां- जैसे टौंसिल, स्लिप ऐपीनिया (जिसमें बच्चे सोये हुए अवस्था में तुरन्त घबरा कर उठ जाते हैं, ठीक से सो नहीं पाते हैं) व साइनस साइटस (नाक का पक जाना) इत्यादि गले से संबंधित संक्रमण के उदाहरण हैं। महानगरों में इनका प्रकोप कुछ ज्यादा ही है।
इसका मुख्य कारण है- बढ़ता प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या तथा भीड़-भाड़ इलाकों में अस्त-व्यस्त, सफाई अभियान। वैसे तो ऐसे रोग, सभी उम्र वर्ग के लोगों में देखे जाते हैं, परन्तु बच्चों में ज्यादा होते हैं, क्योंकि बच्चों में, इन रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है। आमतौर पर, जो मां अपने बच्चों को अपना दूध कम पिलाती है या बिल्कुल पिलाती ही नहीं है, वैसे बच्चों को throat infection ज्यादा होते हैं। यदि किसी बच्चे या व्यक्ति में संक्रमण का प्रभाव है तो इनसे किसी दूसरे व्यक्ति या बच्चे में संक्रमण आसानी से फैलता है। किसी भी सार्वजनिक सथानों में संक्रमित व्यक्ति द्वारा इन रोगों का फैलना एक आम बात है। जिसे हम बोलचाल की भाषा में ‘क्रॉस इनफैक्शन’ कहते हैं, क्योंकि वे वैक्ट्रिरीयल तथा वाइरल इनफैक्शन के कारण फैलते हैं।
टौंसिल
प्रायः टौंसिल में सूजन आने अथवा प्रदूषित पदार्थों का तरल पदार्थ के रूप में, ग्रसिका में जमा होने से गला बैठ जाता है तथा सांस लेने में तकलीफ होती है। ज्यादातर बच्चों में टौंसिल के बढ़ जाने से खाद्य पदार्थों के सेवन ठीक से नहीं हो पाता है, उसके साथ-साथ बच्चों के चेहरे में बदलाव देखे जा सकता हैं, जैसे-दांतों का बाहर निकलना, चेहरे का भारी पड़ना एवं गले के आसपास सूजन होना। जो व्यक्ति ज्यादा धूम्रपान, गुटका, शराब एवं अन्य मादक पदार्थों का सेवन करता है, उनमें टौंसिल अथवा साइनससाइटस का असर देखा जाता है। आये दिन ज्यादा समय तक धूप में रहने, प्रदूषित जगहों जैसे कल-कारखानों तथा वाहनों द्वारा दूषित हवा का सांस के रूप में अन्दर जाने से नजला, जुकाम एवं बुखार का होना एक आम बात है।
नाक, कान एवं गला-ये तीनों एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रसिका छिद्र जिसका सूक्ष्म कार्य होता है, दूषित हवा, जो कि सांस लेने से नसिका छिद्र (नोजल पोर) द्वारा अन्दर आती है, उसे शुध्द कर फेफड़े के अन्दर जाने देना। इन्हीं कारणों से, ये चैकिंग प्वायंट भी कहलाता है। अतः ग्रासिका छिद्र एक इंट्री प्वायंट की तरह, इन दूषित अवयवों को परिशुध्द करता है। ग्रसिका के समीप थायरॉयड तथा उसके आसपास की लिंग्वल ग्रंथि होती है, जो कि सांस छोड़ने से लेकर सांस लेने तक की प्रक्रिया में एक रेगुलेटरी सिस्टम की तरह कार्य करता है। बच्चों में लायरिंक्स में सूजन आना ही, टौंसिल में संक्रमण का मुख्य कारण माना जाता है। इस दशा में, बच्चों को खाने-पीने से लेकर बोलने तक की प्रक्रिया में रूकावट होती है। यदि टौंसिल ज्यादा बढ़ गया है और वहां ग्रंथियों को सुचारू रूप में कार्य करने में बाधा उत्पन्न होती है तो शल्य चिकित्सा के जरिए इसे ठीक किया जाता है।
साधारणतया, जिसे हम टौंसिल कहते हैं, वह हमारे शरीर में रोगों से लड़ने का, एक अंग है। किसी भी कारणों से ये अंग जब संक्रमित हो जाता है तो लायरिंक्स यानी आवाज बनाने वाला एक बाक्स, बुरी तरह से प्रभावित होता है। बड़ों यानी सामान्य उम्र के लोगों में, ज्यादातर मादक द्रव्यों के सेवन से यह इतना प्रभावित होता है कि ऐसी दशा में, इनकी आवाजें बदल जाती हैं, क्योंकि इसमें गले का भारीपन होना महसूस होता है। बच्चों में टौंसिल की गड़बड़ी के कारण बुखार होना, सांस लेने में कठिनाइयों तथा सोते हुए से अचानक बेचैनी से उठ जाना, प्रमुख लक्षण हैं।
पहले, यदि कोई भी, इससे संक्रमित होता था तो शल्य चिकित्सा के द्वारा आवाज बनाने वाला बॉक्स को काटकर उसे पुनः पूर्वावस्था में लाया जाता था, जिससे ऐसी सर्जरी काफी महंगी साबित होती थी, परन्तु अब तो चिकित्सा के क्षेत्र लगातार खोजों से ऐसी शल्य चिकित्सा की प्रक्रिया सरल हो गयी है। हम एक विशेष मेडिकल उपकरण के जरिए संक्रमित अंगों को निष्क्रिय बना देते हैं। नाक, काम एवं गला-ये इस तरह से नजदीकी से जुड़े हुए हैं कि यदि इनमें एक भी अंग प्रभावित होता है तो दूसरा उसके चंगुल से छूट नहीं पाता है। बारिश, आर्द्रता एवं दूषित हवाओं में चलने वाले वायरस तथा बैक्टीरिया हमारी नसिका छिद्र से होकर जब अंदर पहुंचते हैं तो वह इन दूषित पदार्थों को ग्रसिका ग्रंथियों द्वारा छाना जाता है। दमे का होना, अधिक समय तक खांसना तथा बार-बार बलगम का बनना, ये सभी दूषित पदार्थों के जमाव से ग्रसिका छिद्र के मार्ग अवरुध्द होने से, एक रिसाव के रूप में नाम तथा गले में जमा होते हैं।
अधिकांशतः गर्भावस्था में या उसके बाद, बच्चों को टीका नहीं दिलावाए जाने के कारण भी इस तरह की रोगों से लड़ने की क्षमता उन बच्चों में नगण्य हो जाती है, जिसके कारण ऐसे रोग इनमें पनपते रहते हैं। यदि हम कुछ खास बातों की ध्यान में रखें तो निकट भविष्य में throat infection से हमें मुक्ति मिल सकती है।
- बच्चों को कुपोषण का शिकार नहीं होने दें।
- बच्चों के टीकाकरण के प्रति लापरवाही न बरतें।
- हमेशा स्वच्छ पानी या पानी उबालकर ही पीएं।
- भीड़-भाड़ वाले इलाकों में खांसते समय मुंह पर रूमाल रखकर ही खांसे। इससे यदि किसी व्यक्ति में संक्रमण नहीं हो सकता है।
- विभिन्न मादक द्रव्यों जैसे तम्बाकू, सिगरेट, गुटका व मद्यपान से परहेज करें।