न्यूमोनिया का संकेत हो सकता है बलगम

न्यूमोनिया का संकेत हो सकता है बलगम

यदि आपकी खाँसी या छीकें कुछ दिनों में ठीक नहीं होती हैं और आपको सांस लेने में परेशानी होती है, अधिक मात्रा में हरा-पीला बलगम आता है या, खांसते समय खून आता हो तो यह न्यूमोनिया जैसे खतरनाक रोग का रूप भी धारण कर सकता है।

सर्दियां शुरू हुई नहीं कि नाक बहने लगती है और छींकें आने लगती हैं। सर्दी लोगों को अपनी चपेट में ले लेती है। सर्दी शुरू होने से पूर्व ही लोगों के मन में भय रहता है कि सर्दी-जुकाम का मौसम आरम्भ हो गया। इसके साथ ही आरम्भ होता है फ्लू से होने वाले इन्फैक्शन का दौर। फ्लू जो कि एक बीमारी है, लोग इसे आमतौर पर जुकाम ही समझते हैं।

यह बीमारी जुकाम से भी आरम्भ होती है और वायरस फैलकर भी। लेकिन यह बीमारी साधारण जुकाम से अलग होती है। फ्लू पैदा करने वाले वायरस की किस्में हर साल बदलती रहती हैं। जिसके कारण इसके लक्षण का पता लगाना कुछ कठिन सा हो जाता है। फिर भी समय रहते और शुरुआती दौर में इस बीमारी को पकड़ा जाए तो इलाज करना सरल हो जाता है। हर वर्ष इससे बचने के लिए नयी-नयी तकनीकें आ रही हैं। जिसमें से प्राकृतिक चिकित्सा भी एक अच्छी पध्दति है। प्रकृति ने हमें अनेक सारी दवाओं को प्रदान किया है। प्राकृतिक चिकित्सा इस बीमारी पर तुरन्त काबू पा लेता है और फ्लू को आगे बढ़ने से रोकता है। वैसे दवाइयां हर वर्ष नयी से नयी आती रहती हैं, लेकिन दवाएं जल्दी आराम देने के उपरान्त नुकसान भी जल्दी करती हैं। कुछ दवाएं ऐसी भी हैं जिससे कि इन्फैक्शन होने का डर हर समय बना रहता है। इस स्थिति में प्राकृतिक उपचार लेना अति उत्तम होगा।

कई बार दवाओं में वह एक्टिव वायरस भी पाया जाता है जो फ्लू फैलाने में मदद करता है। कई बार यह होता है कि फ्लू के उपचार में उपलब्ध वैक्सीन देते समय या देने के बाद जुकाम के लक्षण होते हैं। जो कि फ्लू तक पहुंच जाते हैं। वैसे भी सर्दियों में पाये जाने वाले आम वायरस काफी मजबूत होते हैं, ऊपर से ऐसी-वैसे दवा ली जाये तो हालात बिगड़ते रहते हैं। इसलिए दवा अच्छी तरह डाक्टर के जांचने के बाद ही लें।

फ्लू से हुए इन्फैक्शन के दौरान समस्या यह है कि इसके साथ ही कई और बीमारियां भी उत्पन्न हो सकती हैं और यह बच्चों तथा बुजुर्गों में अधिक हो सकती हैं। लोगों को इस संदर्भ में राय दी जाती है कि इससे बचने के लिए सर्दियों में अपना ध्यान और दवा का सेवन डाक्टर से परामर्श के बाद ही लें या फिर प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा अपना सरल व स्थायी इलाज करवाकर अन्य कई समस्याओं जैसे न्यूमोनिया आदि से भी बचा जा सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा आज पूरे देश में विकसित हुई है और इसके अच्छे परिणाम सामने आये हैं। इसके अलावा यह रोग किसी भी उम्र के उन सभी लोगों में पाया जाता है जिन्हें दमा, डायबिटीज, दिल और किडनी आदि बीमारियां हों। इसके अलावा जिनका मेडिकल उपचारों की वजह से इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो गया हो या फिर वे लोग जो नर्सिंग होम्स में बहुत समय से रह रहे हों, को होने की आशंका रहती है। इसलिए इसका पूरा ध्यान रखान चाहिए।

फ्लू अचानक पूरे शरीर को प्रभावित करता है। इससे शरीर में कभी-कभी बहुत अधिक ठण्ड और कभी-कभी गहरी हल्की सी गरमाइश बनी रहती है। इससे रोगी अपने आपको थका हुआ महसूस करता है, शरीर टूटा सा रहने लगता है और नाक बहने लगती है। अक्सर ऐसा होता है कि कुछ ही क्षण पहले तक आप आराम से अपना काम कर रहे होते हैं और कुछ ही क्षण बाद आपको जुकाम अपनी चपेट में ले लेता है। यह लगभग एक हफ्ते तक रहता है। कई बार तीन-चार दिन में ही ठीक हो जाता है। कभी-कभी हफ्ते से ज्यादा दिन भी रहता है। उस समय डाक्टरी जांच करवाना हितकारी होगा। यह आम होने वाले जुकाम, जिसे कि कॉमन कोल्ड कहते हैं, से एकदम अलग होता है। कॉमन कोल्ड (साधारण जुकाम) के लक्षण धीरे-धीरे आते हैं और यह सिर्फ नाक, गले, साइनस तथा छाती के ऊपरी हिस्से को प्रभावित करता है जबकि फ्लू पूरे शरीर को प्रभावित करता है। अगर किसी को साधारण जुकाम हुआ हो, तो भी वे घर-बाहर के अपने काम को कर सकते हैं, लेकिन फ्लू होने की स्थिति में ऐसा नहीं होता। इसमें भरपूर आराम मिलना चाहिए।

सर्वप्रथम सर्दी से बचाना ही बचाव है। सर्दी में फैलने वाले वायरस को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। अपना पूरा ध्यान अपने स्वास्थ्य के प्रति होना चाहिए। वैसे भी स्वस्थ रहने के लिए ढेर सारे फल व सब्जियों का सेवन करना, नियमित व्यायाम करना, चिन्ता मुक्त रहना, धूम्रपान न करना और पूरा आराम करना अति आवश्यक है। ये सब बातें शरीर को चारों ओर से फैले इन्फैक्शन्स से बचाने में सहायता करते हैं। धूम्रपान करना इसके लिए बहुत ही हानिकारक है यह न केवल शरीर के डिफेंस सिस्टम को कमजोर करता है बल्कि इन्फैक्शन्स को भी शरीर पर हावी होने देता है और शरीर को पूरी तरह से प्रभावित करता है। जो लोग खांस रहे हों या छींक रह हों, तो ऐसे लोगों से दूर रहकर भी फ्लू के इन्फैक्शन से बचा जा सकता है। किसी व्यक्ति के छींकने या खांसने पर फ्लू वायरस के कण लगभग सौ मील प्रति घंटा की रफ्तार से तकरीबन 50 फीट की दूरी तर फैल जाते हैं। कई बार भीड़ जैसी जगह में लोग एक-दूसरे से या अजनबी से बातचीत करते हुए भी इन्फैक्शन का खतरा बना रहता है।

फ्लू में बचाव ही उपचार है। फ्लू वायरस के कारण अधिक फैलते हैं। इसलिए एंटीबायोटिक्स इन बीमारियों के उपचार में कोई असर नहीं करती है। इन्हें ले भी लिया जाए तो उल्टा नुकसान ही पहुंचाते हैं। इस स्थिति में प्राकृतिक उपचार अपनाना अमृत के समान होता है। यहां तक कि आपका शरीर भी प्राकृतिक रूप से इन्फैक्शन के खिलाफ लड़ता है। शरीर को इन्फैक्शन से लड़ने के लिए अधिक मात्रा में एनर्जी का प्रयोग करना चाहिए। फ्लू के उपचार में आराम सबसे जरूरी है। शुरू के दो-तीन दिन पूरी तरह से आराम करना चाहिए। यह अधिक फायदेमंद रहता है।

जब शरीर इन्फैक्शन से लड़ रहा होता है, तो उस वक्त काफी संख्या में शरीर के तरल पदार्थों का नुकसान होने लगता है जिनकी पूर्ति करना अति आवश्यक है। उस वक्त गर्म पानी में ताजा नींबू, अदरक तथा एक चम्मच शहद लेने से काफी आराम हो जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन-सी व डी लेना चाहिए और अधिक मात्रा में एनर्जी का सेवन करना चाहिए। यदि आप कुछ दिनों में ठीक नहीं होते हैं और आपको सांस लेने में परेशानी होती है, अधिक मात्रा में हरा-पीला बलगम आता है या, खांसते समय खून आता हो तो यह न्यूमोनिया जैसे खतरनाक रोग का रूप भी धारण कर सकता है। इस स्थिति में तुरन्त ही डाक्टर से सम्पर्क करना चाहिए। आमतौर पर लोग इसे साधारण ही लेते हैं जो कि बाद में खतरनाक साबित होता है और फिर इसका उपचार करना भी कठिन हो जाता है। इसलिए इसके उपचार में बिल्कुल ही लापरवाही न बरतें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *