केले के प्रकार
उत्तर भारत में चार प्रकार के केले उपलब्ध हैं। प्रथम तो वैशाली जनपद का केला। आकार बहुत बड़ा नहीं होता परन्तु थोड़ा वक्र लिये होता है। इसे छिमियां केला भी कहते हैं। आजकल इसे हाजीपुरी केला कहते हैं जो उत्तर बिहार की देन है। दूसरा केला जनपद पुरी यानि श्रीक्षेत्री जंगन्नाथपुरी का ओड़िया केला जो सीधा और बड़े आकार का होता है। तीसरा केला जनपद उज्जैन (अवन्ती) का बहुत बड़े आकार का मोटा होता है। इसे मालवा का केला भी कहते हैं। दक्षिण भारत भी केला उत्पादन व केले की खेती के लिये विख्यात है। जो चौथे प्रकार का केला माना जाता है। पांचवें प्रकार में सिंगापुरी केला है जो बड़े आकार का थोड़ा वक्र होता है, भारत में इसे पूजा में उपयोग नहीं करते हैं।
केला मस्तिक को शक्ति प्रदान करता है। यह मात्र फल ही नहीं है बल्कि रोगों से लड़ने वाला योध्दा है। केला पौष्टिक तत्वों से भूरपूर रहता है। हरे (कच्चे) केले में स्टार्च अत्यधिक मात्रा (64 से 74 प्रतिशत) में तथा शर्करा कम मात्रा (02 प्रतिशत) रहती हैं, परन्तु पकने पर स्टार्च शर्करा (7 से 25 प्रतिशत तक) में बदल जाती है। पके केले में 70 प्रतिशत पानी, 1.2 प्रतिशत प्रोटीन, 0.2 प्रतिशत वसा (फैट), 22-25 प्रतिशत शर्करा तथा 1 प्रतिशत रेशा रहता है। इसमें कैल्शियम 17 मिलीग्राम, फास्फोरस 36 मि.ग्रा. तथा आयरन 0.9 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम में रहता है। इसमें विटामिन- ए 430 मि.ग्राम. थायमिन-0.08 मि.ग्रा. राइबोफ्लेविन 0.06 मि.ग्रा., नायसिन 0.06 मिग्रा, तथा विटामिन- सी 10 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम में रहता है। 100 ग्राम केला 99 कैलोरी ऊर्जा देता है।
केले के फायदे
मानसिक रूप से व्यग्र व परेशान व्यक्तियों के मस्तिष्क में सेरोटोनिन की कमी होती है, केले में यह कमी पूरी करने की अद्भुत क्षमता है, केले से मस्तिष्क को सेरोटोनिन प्राप्त होता है। केले में आवश्यक पौटेशियम होता है जो उच्च रक्तचाप के नियंत्रण में तथा कई तरह के हृदय रोगों में लाभदायक रहता है। केला व्यक्ति के आंतों की सड़न को रोकता है। केले का कैल्शियम आंतों की सफाई करने में अत्यंत प्रभावी भूमिका निभाता है। केले में सोडियम अल्प-मात्रा में रहता है तथा कोलेस्ट्रोल बिल्कुल नहीं होता। अत: यह मोटापा नहीं बढ़ाता, डाइटिंग करने वाले इसका व्यवहार कर सकते हैं। केले के पेड़ की जड़ कृमिनाशक, पौष्टिक, भूख बढ़ाने वाली, पथरी, पेचिश (आंव-शूल) में लाभकारी, मासिक-धर्मशोधक, मधुमेह तथा कुष्ट रोग का नाश करने वाली होती है। रक्त आंव व रक्त दस्त में दिन में तीन बार केले के वृक्ष के तने का रस दो-दो चम्मच पीने से लाभ होता है।
पके केले की विशिष्ट सुगंध उसमें उपस्थित स्माइल इसीटेट के कारण रहती है। कच्चा केला क्लोरोफिल के कारण हरा रहता है। परन्तु पकने पर एंजाइमों की क्रिया से जैथोफिल तथा केरोटिन नामक पीले रसायनों में बदल जाता है। यही कारण है कि पका केला पीले रंग का दिखता है।
केले के छिलके के नीचे विटामिन रहते हैं, जो केले के पकने पर उसके गूदे में चले जाते हैं तथा छिलका पतला औरचित्तीदार हो जाता है। केले के छिलके के अंदर वाला पतला मुलायाम रेशा कब्ज दूर करके आंतों को ठीक रखता है। पका केला ठंडा, रूचिकर, मीठा, सुस्वाद पुष्टिकारक, रक्त विकारनाशक, पथरी रक्त पित्त दूर करने वाला, प्रदर एवं नेत्र रोग मिटाने वाला वाला होता है। केले का नियमित सेवन अनिंद्रा और कब्ज दूर करके मूत्र की जलन मिटाता है। यह अतिसार, आंत और हृदय रोगियों व कुष्ठ रोगियों के लिये प्राकृतिक औषधि है। यह आसानी से पच जाता है। अत: वायु विकार उत्पन्न नहीं करता। केला शीतल, पौष्टिक, बलबर्ध्दक, मधुर, स्त्रिग्ध, वातपित्त-नाशक और कफकारक रहता है। यह तृष्णा एवं दाह का नाश करता है।
केले में अधिक मात्रा में उपस्थित फास्फोरस मन-मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है। इसमें उपस्थित पैक्टिन मल को मुलायाम बनाकर पेट की सफाई करता है। यह क्षारधर्म फल है। अत: रक्त की अम्लता को दूर करके क्षारीयता बढ़ाता है। कमजोर व्यक्तियों की पाचन शक्ति ठीक होती है। भूख अधिक लगने लगती है। शीघ्र हृष्ट-पुष्ट बनते हैं। यह एकमात्र फल है जो पेट के घाव में रोगियों को दिया जा सकता है। यह पेट के अल्सर को भी दूर करता है। पेट में जलन हो तो पका केला खाएं। बार-बार मूत्र होता हो (पोलीयूटिया) तो बार-बार केला खाना चाहिये।
जिन महिलाओं को सफेद पानी (श्वेद प्रदर) की बीमारी हो उन्हें कुछ दिन रोगी को कम से कम चार पके केले नित्य खाने चाहिये। प्रात:काल खाने से हृदय बलवान बनता है, दिल की धड़कन तथा दिल के दर्द में लाभ होता है। बच्चों को दूध के साथ केला खिलाने से यह स्वास्थ्यवर्ध्दक, पुष्टिकारक तथा सुपाच्य रहता है। इनमें थोड़ा हनी मिलाकर खिलाया जाए तो संक्रामक रोग से भी बचाव होता है। प्रात: जलपान में केला खाकर दूध पीना एक सन्तुलित तथा सम्पूर्ण आहार है। इसके सेवन से पित्त-विकार दूर होते हैं। केला उच्च रक्तचाप के नियंत्रण में सहायक है। यह हृदयरोग, अतिसार और आंखों के लिये प्राकृतिक औषधि है।
स्कर्वी रोग में पके केले का नित्य सेवन रामबाण औषधि है। यह अंतड़ियों में विजातीय पदार्थों की सड़न रोकता है। दही के साथ केले के सेवन से दस्त (आंव) बंद हो जाते हैं। आंतों के प्रदाह में आराम मिलता है। आंत के रोगों को केला बिना आपरेशन ठीक कर देता है। पेचिश में केले को दही के साथ मथकर उसमें थोड़ा जीरा चूर्ण तथा काला नमक मिलाकर देने से लाभ होता है। अम्लता, पेट की जलन और पित्त में केला खाना लाभदायक है। मुंह में छाले हों तो केला खाने से लाभ होगा। पके केले को मंद आंच में पकाकर नमक, काली मिर्च मिलाकर दमा के रोगी को खिलाने से लाभ होता है। नकसीर (नाक से रक्त प्रवाह) में 2-3 पके केले का गूदा, दूध तथा शक्कर मिलाकर पीन से आराम मिलता है। मियादी बुखार (टायफाइड) के बाद छोटी इलाइची के चूर्ण के साथ रोगी को पका केला खिलाना चाहिये। इससे बुखार से आई दुर्बलता दूर होती है।
प्रात: काल दूध में पका केला फेंटकर सेवन करना पुष्टिकारक एवं तृप्तिदायक आहार है। दुबले व्यक्तियों के वजन बढ़ाने में यह सहायता करता है। आधा कप गाय के दही में एक केला तथा छोटी इलाइची का चूर्ण मिलाकर दिन में दो-तीन बार चाटने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। महिलाओं के प्रदर रोग में पका हुआ एक केला पांच ग्राम घी के साथ कुछ दिन प्रात: संध्या सेवन करने से लाभ होता है। पके केले के लगातार सेवन से सूखी खांसी, गले की खराश तथा गुर्दे की कमजोरी दूर हो जाती है। पका केला कृमि रोग नाशक है। इसके सेवन से रक्त की खराबी दूर होकर त्वचा के रोग नष्ट हो जाते हैं। दाद, खाज, खुजली में पके केले में नींबू का रस मिलाकर मरहम बनाकर लगाएं। जलने पर पके केले के गुदा को मरहम की तरह लगाने से जलन शांत होगी तथा फफोले नहीं पड़ेंगे।
पके केले के गूदे में आटा मिलाकर पानी के साथ गूंथ लें, इसे गरम करके सूजन वाले स्थान पर बांधने से सूजन दूर हो जायेगी। चोट पर केले का छिलका बांधने से आराम मिलता है। घाव पर केले का पानी लगाकर पट्टी बांधने से घाव शीघ्र भर जाएगा। जो बच्चा मिट्टी खाता हो उसे 5 ग्राम मधु (हनी) के साथ एक केला प्रतिदिन खिलाएं। इससे पेट की मिट्टी बाहर आ जाएगी तथा बच्चे की मिट्टी खाने की आदत भी छूट जाएगी। बच्चा कांच की गोली, सिक्का आदि निगल जाए तो उसे केला खिलाना चाहिये। केले को दिन में खाएं, क्योंकि सूर्य ताप के कारण यह शीघ्र पचता है, रात्रि में खाया गया केला यथाशीघ्र नहीं पचता। अगर पेट खाली है, भूख की तीव्रता है तो भी केला न खाएं। इसे भोजन के साथ खाएं या भोजन करने के बाद लें। केला खाकर जल पीना मना है। हां दूध पी सकते हैं या छोटी इलाइची खाएं, केला शीघ्र पच जाएगा।