विज्ञापनों से उजड़ रहा है स्वास्थ्य व सौंदर्य – Advertisements are ruining health and beauty

विज्ञापनों से उजड़ रहा है स्वास्थ्य व सौंदर्य - Advertisements are ruining health and beauty

इन दिनों स्वास्थ्य, सौंदर्य और व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए बाजार प्रचुर मात्रा में विविध उत्पादनों से भरे पड़े हैं। 25-30 वर्ष पहले जितनी तरह के साबुन, उबटन तथा सौंदर्य प्रसाधन मिलते थे, उनसे सौ गुनी ज्यादा चीजें आज बाजार में भरी पड़ी है परन्तु स्वास्थ्य, सौंदर्य और सुगढ़ता की दृष्टि से औसत स्थिति पिछड़ी ही है।

बीमारियों के लिए नये-नये उपचार खोज लिए गये हैं, लेकिन नयी-नयी तरह की बीमारियां लोगों को अपना शिकार बना रही है सौंदर्य संवारने के लिए साबुन, तेल, सुगंधित पदार्थ, विटामिन, शैम्पू आदि उपलब्ध हैं, लेकिन स्वास्थ्य जिस प्रकार लड़खड़ाया है, उससे सारे उपाय बाहरी चमक ही दर्शाते हैं। जर्जर शरीर और कम होती जीवनी-शक्ति के कारण व्यक्तित्व खोखला ही होता चला जा रहा है।

सुन्दरता के संबंध में आजकल कई मानदंड निर्धारित हो रहे हैं। उनमें स्वस्थ-सुडौल शरीर के स्थान पर छरहरी रंगी-पुती काया और फैशन डिजाइनरों द्वारा रचे विज्ञापति किये गये वस्त्र मुख्य हैं। यह धारणा पुरानी रूढ़िवादी और पिछड़ी करार दी गयी है कि वस्त्र शरीर ढंकने या मौसम के प्रभाव से बचने के लिए हैं। वास्तव में पश्चिमी वेशभूषा कोट, पैंट, टाई आदि भारतीय परिवेश के अनुकूल नहीं है। यहां के बदलते मौसम के लिए भारतीय परिधान ही उपयुक्त हैं, लेकिन आज के समय में यह बात कहना घोर पिछड़ेपन का परिचायक माना जाने लगा है। वास्तव में शरीर को ढकने के बजाय उघाड़ने-उभारने वाले कपड़े न स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त हैं और न ही सभ्यता के।

प्रदर्शन का ही दूसरा रूप शरीर को जबरदस्ती छरहरा और दुबला-पतला रखने के लिए किये गये तरह-तरह के उपाय हैं। शरीर स्वस्थ और सुडौल हो, इसके लिए संतुलित आहार-विहार और श्रम-विश्राम ही काफी है परन्तु आजकल डाइटिंग से लेकर वजन कम करने के लिए अनेक प्रकार के रस-रसायनों का प्रयोग, कष्टकर व्यायाम और शरीर को कमजोर कर देने वाली नाममात्र की खुराक का फैशन चल पड़ा है। सौंदर्य और स्वास्थ्य विषय पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने बताया कि पांच लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में बीस प्रतिशत युवतियां भूखे रहकर मात्र पच्चीस प्रतिशत भोजन करती हैं। उन्हें आवश्यक कैलोरी की सिर्फ एक तिहाई मात्रा ही मिल पाती है। इस कारण तीस वर्ष की उम्र पार करने के बाद उन्हें सिर चकराने, जल्दी थकावट, खून की कमी और अनिद्रा जैसी शिकायतें होने लगती हैं।

हमारे प्राचीन ऋषि मनीषियों ने शरीर को धर्म साधना का प्रमुख आधार माना है। जिन्हें धर्म-साधना में कोई रूचि नहीं, उन्हें भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि सांसारिक उद्देश्यों जैसे यश, धन सफलता और सत्ता पाने के लिए शरीर का स्वस्थ और समर्थ होना अनिवार्य है। किसी भी दृष्टि से कमजोर और बीमारी ग्रस्त शरीर अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचता। इसलिए शरीर की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।

वास्तव में बाजार में आने वाले नये-नये साधनों और उपायों का प्रयोग करने वाले शरीर की उपेक्षा नहीं करते। वे उपभोक्ता तो सामग्री बनाने वाली कम्पनियों के विज्ञापन और मकड़जाल में उलझकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य, सौंदर्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व किन्हीं प्रसाधनों या कृत्रिम चीजों से प्राप्त नहीं होता। इस तथ्य को अपने मन में भली-भांति बिठा लेना चाहिए कि संतुलित, पौष्टिक आहार विहार और प्राकृतिक सहज स्वाभाविक जीवनचर्या ही शरीर को बलिष्ठ, समर्थ और सक्षम रखती है। उसके लिए विज्ञापन देश सुनकर तय करना बुध्दिमानी नहीं कहा जा सकता।

Nowadays, the market is full of products that try to improve health, beauty, and personality. The market has a lot more soaps, lotions, and cosmetics now than it did 25-30 years ago. However, most people are not as healthy or beautiful as they used to be.

New treatments have been discovered for diseases, however, new types of diseases are causing individuals to become victims. There are soaps, oils, perfumes, vitamins, shampoos, etc. for beauty, but health has declined. As a result, all the solutions exhibit only an external glow. Due to a deplorable body and diminishing vitality, the personality is becoming hollow.

Today, many standards are being set regarding beauty. Among them are thin painted bodies instead of healthy and shapely ones, and advertised clothes made by fashion designers. The belief that clothes are meant to cover the body or protect from the effects of the weather has been termed old, conservative, and backward.

The Indian climate doesn’t allow western attire like a coat, pants, tie, etc. Only Indian clothes are good for the changing weather here, but in today’s world, saying this is considered a sign of being very old-fashioned. Clothing that exposes the body instead of covering it is not conducive to good health or social advancement.

Another form of evidence is the various measures taken to forcefully keep the body slim and trim. To keep your body healthy and strong, eat a balanced diet, exercise, and rest. But nowadays, people are using different methods to lose weight, like dieting, using chemicals, doing painful exercises, and eating too little food that makes your body weaker.

Scientists conducting research on beauty and health have discovered that in cities with a population exceeding five lakh, twenty percent of girls experience hunger and consume only twenty-five percent of the available food. They get only one-third of the required calories. As a result of this, individuals experience symptoms such as dizziness, early fatigue, anemia, and insomnia after reaching the age of thirty.

Our ancient sages considered the body to be the main basis for religious practice. Even those who don’t believe in religion will have to accept the fact that in order to become worldly famous, fortune, successful and in charge, the body needs to be in good shape and strong. A body that is weak from any point of view and has disease doesn’t reach its goal. Therefore, the body should not be neglected.

In fact, individuals who utilize the novel tools and remedies available in the market do not neglect the human body. Those consumers remain entangled in the advertisements and web of content producing companies, which produce content. The attainment of health, beauty, and an impressive personality cannot be achieved through the use of cosmetics or artificial substances. A balanced diet and a natural lifestyle keep the body strong, capable, and capable. It’s not wise for them to make a decision after listening to the advertisement companies.

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