भारत ही नहीं, दुनिया में जिस तेजी से Diabetic की संख्या बढ़ रही है उसमें सभी चकित हैं। पहले वंशानुगत एवं अधिक आयु व धनाढ्यों को मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त पाया जाता था किन्तु वर्तमान काल में Diabetic की संख्या बढ़ने या नये Diabetic बनाने में कई अन्य कारण सहायक हो रहे हैं। कुपोषण पीड़ित बच्चे एवं बड़े पेंक्रियाज की कार्यक्षमता में कमी आने के बाद शुगर पीड़ित पाए जा रहे हैं। आधुनिक संसाधनों के कारण आरामपसंद पीढ़ी मधुमेही बन रही है। आधुनिक खानपान, फास्ट फूड, ड्रिक्स एवं प्रोसेस्ड फूड कैलोरी से भरपूर होने के कारण यह सेवनकर्ताओं को डायबिटिक बना रहे हैं। हृदय रोगियों की संख्या बढ़ती रही हैं जो आगे चलकर शर्करा पीड़ित रोगी बनते जा रहे हैं। मोटापा पीड़ित एवं नवधनाढ्य भी इसके रोगी बन रहे हैं। प्रदूषण की अधिकता भी मधुमेह की दिशा में ले जा रहा है।
मोटे तरह-तरह के
मोटे भी कई प्रकार के होते हैं। बचपन का मोटापा माता-पिता एवं वंशानुगत कारणों से तो होता है साथ ही बच्चे को मां से भरपूर दूध मिलने या अधिक दिनों तक मां का दूध पीते रहने के कारण वह बच्चा मोटा हो जाता है। बच्चा अधिक दवाओं के कारण भी मोटा होता है। बचपन में अधिक पौष्टिक खान-पान, दुलार की अधिकता एवं खेलकूद की कमी के कारण बच्चे मोटे हो रहे हैं। हाइपोथायराइड भी सबको मोटा बना देता है। गर्भवती महिलाएं कुछ मोटी दिखती है। किडनी की कार्यक्षमता में कमी एवं नमक की अधिकता भी पानी रोककर कुछ मोटा बनाती है।
बड़े जब आवश्यकता से अधिक खाते हैं तो मोटे हो जाते हैं। सिटिंग जाब वाले मोटे हो जाते हैं। युवतियां विवाह उपरांत या नौकरीपेशा बनकर निश्चित जीवन के कारण मोटी हो जाती हैं। मेनोपाज के बाद कुछ महिलाएं मोटी हो जाती हैं। बाहरी मोटापा सबको दिखता है किन्तु शरीर के भीतर में हृदय, लीवर व पेक्रियाज भी मोटा होता है। ऐसे भीतरी मोटापे का शिकार दुबला पतला व्यक्ति भी हो सकता है। निष्कर्ष सभी के मोटापे में अंतर होता है और मोटापे की अधिकता थुलथुला बना देती है।
कम्प्यूटर से आंखों का काम होता तमाम
इन दिनों टीवी कम्प्यूटर एवं लैपटाप का अधिकाधिक उपयोग हो रहा है। इनके उपयोगकर्ता लंबे समय तक इससे चिपके रहते हैं। इसके अधिकाधिक उपयोग से शरीर के कई अंग प्रभावित हो रहे हैं किन्तु आंखे सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं। टीवी कम्प्यूटर एवं लैपटाप का उपयोग करते समय आंखें ही सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। आंखें सर्वाधिक काम करने के कारण ये थकती व बीमार भी अधिक पड़ती हैं। उपयोगकर्ता बिना पलक झपकाए इसे देखता है।
इससे आंखों का लेंस प्रभावित होता है और आंखों का पानी सूख जाता है। आंखों की नमी खत्म हो जाती है। पलक झपकाने पर आंखों में किरकिरी होने लगती है। दर्द होता है। दूरदृष्टि प्रभावित होती है। दूर की वस्तु देखने एवं सूर्य की तेज रोशनी में परेशानी होती है। सिर में दर्द, दृष्टिहीनता, कंधे में दर्द, गले में अकड़न आदि की शिकायत बढ़ जाती हैं। इससे बचने के लिये टीवी, कम्प्यूटर, लैपटाप ज्यादा समय तक लगातार उपयोग न करें। हर घंटे बाद विश्राम या अंतराल ब्रेक जरूरी है अन्यथा समस्या विषम हो जायेगी।
दवाओं को तोड़कर खाना ठीक नहीं
सभी दवा निर्माता दवा में मिले रसायनों एवं उसकी क्रिया को देख उसे टिकिटा, कोटेड या कैप्सूल अथवा पाउडर एवं लिक्विड फार्म में निर्माण करते हैं। डाक्टर भी रोगी की आयु व प्रकृति के अनुसार दवा सुझाते हैं। ऐसी दवाओं को तोड़कर खाने, पीसकर खाने या किसी के साथ मिलाकर खाने के उसके प्रभाव करने का रूप बदल जाता है अथवा विपरीत या अन्य प्रतिक्रिया करती है। दवाओं का तेज रसायन नुकसान करता है। साइड इफेक्ट पैदा करता है अथवा विकृति पैदा करता है। बच्चों को दी जाने वाली अधिकतर दवा तरह रूप में शक्कर मिश्रित होती हैं। कैप्सूल पेट के अंदर जाकर खुलता एवं घुलता व प्रभाव करता है। इस कैप्सूल के भीतर दवा चूर्ण रूप में होती है। टिकिया पेट के अंदर जाकर घुलती है एवं दो घंटे में उसका पूरा प्रभाव दिखता है। कुछ दवाएं टिकिया के रूप में शुगर कोटेड होती हैं। ये भी पेट के अंदर जाकर घुलती व प्रभाव दिखाती हैं। अतएवं डाक्टर के सुझाए अनुसार ही दवा लें एवं शीघ्र स्वास्थ्य लाभ पाएं।
ग्रीन टी का अधिक सेवन नुकसानदायक
ग्रीन टी का खूब गुणगान किया जा रहा है किन्तु उसके अंधाधुंध सेवन से यह कई तरह से नुकसान भी पहुंचा सकती है। ग्रीन टी अथवा हरी पत्ती की चार का कम या कभी-कभार सेवन लाभदायक है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने पर नुकसान उठाना पड़ता है। इसका कैफीन व टैनिन अपना प्रभाव दिखाता है। लीवर व किडनी को प्रभावित करता है। सेहत पर बुरा असर पड़त है। लीवर में विष एकत्र होने लगता है पानी भर जाता है। चाय कोई भी हो कैसी भी हो, उसकी अधिकता सदैव नुकसानदायक है।