कहां से आया एड्स (AIDS)?
एड्स (AIDS) वास्तव में अंग्रेजी नाम का संक्षिप्त रूप है – एक्वायर्ड इन्यूनो डिफीशिअन्सी सिन्ड्रोम यानी जन्मोतर अर्जित प्रतिरोध क्षमता का अभाव। इस रोग के वायरस का नाम मानव प्रतिरोध क्षमता अभाव वायरस या एच.आई.वी. है।
एड्स (AIDS) वायरस से होने वाला एक रोग है, यह वायरस हमारे शरीर के प्रतिरोध तंत्र को तहस-नहस कर देता है। ऐसे में कोई भी संक्रामक रोग जानलेवा बन जाता है और कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। यह कहना मुश्किल है कि यह वायरस आया कहां से। इस बात का पता लगाने के लिए और जानकारी इकट्ठी हो रही है, परन्तु जैसे-जैसे एड्स के बारे में जानकारी इकट्ठा हो रही है, वैसे-वैसे यह सवाल और जटिल होता जा रहा है।
जब एड्स (AIDS) का यह वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है तो यह शरीर की कुछ कोशिकाओं में घुस जाता है। यहां यह आजीवन पड़ा रह सकता है। कुछ लोगाे में घुसने के बाद यह वायरस कई सालों मसलन, दस साल से भी ज्यादा समय तक निष्क्रिय अवस्था में पड़ा रह सकता है परन्तु इस दौरान यह वायरस अन्य व्यक्तियों तक पहुंच सकता है, खासकर उनके यौन सहचरों तक।
अन्य व्यक्तियों के शरीर में यह वायरस जल्दी ही बहुत सक्रिय हो जाता है, तेजी से इसकी संख्या बढ़ जाती है और जल्दी ही एड्स (AIDS) के लक्षण विकसित हो जाते हैं। वायरस शरीर की कुछ ऐसी कोशिकाओं को नष्ट कर देता है जो आमतौर पर बीमारियों के खिलाफ लड़ाई का काम करती है। जब ये कोशिकाएं नष्ट हो जाती है तो शरीर कई बीमारियों और कुछ किस्म के कैंसरों के खिलाफ अपना बचाव नहीं कर पाता। इस तरह से एड्स के रोगी रोग के आक्रमण और कैंसर के प्रति आरक्षित हो जाते हैं।
एड्स (AIDS) रोगियों की होने वाली बीमारियां अलग-अलग हो सकती है परन्तु एक बात में समानता रहती है। उनकी प्रतिरोध प्रणाली ठप्प हो जाती है।
एच.आई.वी. वायरस द्वारा होने वाली बीमारियों में एड्स (AIDS) सबसे भयानक है परन्तु कुछ अन्य साधारण बीमारियां भी हो सकती है। समय बीतने के साथ यही साधारण बीमारियां गम्भीर रूप ले लेती है। वायरस घुसपैठ के बाद अधिकांश लोगों में एक लम्बी अवधि तक कोई रोग नहीं होता। उसके बाद विकसित हो जाता है। ताजा अनुमान के मुताबिक वायरस ग्रस्त लोगों में से 50 प्रतिशत को 4 साल के अन्दर एड्स हो जायेगा। वायरस घुसपैठ के तुरन्त बाद बीमार नहीं दिखते। मगर इस अवधि में वे अपने यौन सहचर को यह वायरस दे सकते हैं।
परन्तु समय के साथ व्यक्ति में एड्स के लक्षण प्रगट होंगे, इसकी प्रबल संभावना है। वायरस कई बीमारियों को जन्म दे सकता है और अंततः एड्स हो जाता है। एड्स के रोगियों का वजन 10 प्रतिशत तक कम हो सकता है और उन्हें लम्बे समय तक दस्त या बुखार की तकलीफ हो सकती है। इसके अलावा उनमें चमड़ी, गले या ग्रंथियों से जुड़ी कई दिक्कतें दिख सकती है और उन्हें निमोनिया या कैंसर जैसे घातक रोग भी हो सकते हैं। एड्स के अधिकतर रोगी एड्स पता लगाने के 2 साल के अन्दर खत्म हो जाते हैं। कुछ ही लोग इससे ज्यादा जी पाते हैं।
वायरस की वजह से कुछ कम गम्भीर रोग भी हो सकते हैं। एड्स ग्रस्त लोगों में ऐसे हल्के व गम्भीर संक्रमण होते रह जाते हैं। उनका शरीर इन रोगों के खिलाफ खुद का पूरा बचाव नहीं कर पाता, परन्तु फिर भी संघर्ष तो करता ही है। धीरे-धीरे इन मरीजों में एड्स पूरी तरह विकसित हो जाता है।
एड्स का असर तंत्रिका तंत्र व दिमाग पर भी हो सकता है। इसके कारण शरीर में संयोजन की कमी या मानसिक भ्रम की स्थिति भी पैदा हो सकती है।
इनमें से कई लक्षण अन्य बीमारियों के समान ही है परन्तु इनसे एच.आई.वी. का निष्कर्ष निकालना हमेशा सही नहीं होता। एड्स की शंका तभी होता है जब ये लक्षण लम्बे समय तक जारी रहे। यह भी देखना होगा कि उस व्यक्ति को एड्स के वायरस से सम्पर्क का कोई जरिया था या नहीं।
किसी वायरस ग्रस्त व्यक्ति से किसी अन्य व्यक्ति तक वायरस फैलने के तीन रास्ते हैं।
- यौन क्रिया
- वायरस मिला खून
- मां से बच्चे को।
जिस व्यक्ति के कई यौन पार्टनर हो, जिन्हें पहले ही कोई यौन संबंधी रोग हो व जो लोग ऐसी सुई से इंजेक्शन लेते हों जिसे रोगाणुमुक्त नहीं किया गया है, इन्हें एड्स होने का खतरा ज्यादा है। वायरस वाली मां के बच्चों को यह वायरस जन्मजात हो सकता है।
एड्स (AIDS) से बचाव
मात्र देखकर यह बताना नामुकिन है कि किसी व्यक्ति के शरीर में एड्स वायरस है या नहीं ऐसे व्यक्ति काफी लम्बी अवधि तक स्वस्थ नजर आते हैं परन्तु वे वायरस के वाहन हो सकते हैं। पहली बात यह है कि ऐसे व्यक्ति कुछ समय बाद बीमार पड़ सकते हैं। दूसरी बात यह है कि ऐसे व्यक्तियों के जरिए वायरस दूसरे व्यक्तियों तक पहुंच सकता है। कोई भी ऐसी यौन क्रिया जिसमें स्रावों का लेने-देन होता हो, वायरस की अदला-बदली का भी जरिया बन सकती है। आलिंगन इत्यादि में कोई समस्या नहीं है। आप और आपके यौन सहचर को यह जोखिम पहचानना होगा। यह तय करना होगा कि क्या सुरक्षित है और क्या नहीं।
एड्स के बचाव काफी आसान है हालांकि कुछ लोगों को लगता है कि जीवन शैली बदलना बहुत मुश्किल है। कई लोग तो वैसे ही सुरक्षित हैं- अधिकांश लोग, कई लोगों के साथ यौन संबंध नहीं रखते न ही वेश्यागमन करते हैं। वायरस मुक्त यौन सहचर से ही संबंध बनाये। यही सर्वोत्तम है परन्तु यौन संयम बरतना जरूरी है। यदि कंडोम का ठीक तरह से इस्तेमाल किया जाये तो यौन स्राव की अदला-बदली नहीं होती। वायरस इन द्रवों में मौजूद होता है। इस प्रकार से कंडोम द्रवों के प्रवाह के साथ-साथ वायरस का प्रवाह भी रोकता है।
एड्स से बचाव का दूसरा तरीका है कि जब कभी इंजेक्शन लें, तो ध्यान रखें कि सुई व सीरिंज अच्छी तरह से उबालकर रोगाणुमुक्त कर दी गयी हो। शल्य क्रिया के अन्य औजारों पर भी यही बात लागू होती है। वायरस से ग्रस्त किसी व्यक्ति के साथ आप एक ही कमरे में रहने से एड्स नहीं होता। उस व्यक्ति को छुए तो भी एड्स का कोई खतरा नहीं है। एड्स वायरस यौन स्रावों और खून के जरिये फैलता है। हवा के माध्यम से यह नहीं फैलता है। कोई आपके करीब छींक दें/ खास दें तो आपको सर्दी-जुकाम तो हो सकता है, एड्स नहीं। हाथ मिलाने, छूने, गले मिलने से वायरस नहीं फैलता। शौचालय या बाथरूम से वायरस नहीं फैलता। आप सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल बिना डरे कर सकते हैं। कई लोगों को मच्छर, कीड़े वगैरह के काटने से एड्स की चिन्ता लगी रहती है। लेकिन ये कीट वायरस नहीं फैलाते।