डेंगू बुखार की चर्चा कुछ सालों से प्रतिवर्ष देश के कोने-कोने में होती रही है। दरअसल हर साल देशभर में डेंगू जिस तरह का आतंक फैलाता रहा है, उसकी दहशत बहुत बाद तक भी महसूस की जाती है। आधुनिक चिकित्सा पध्दति ने इस खास तरह के बुखार का नम ‘डेंगू बुखार’ रखा है।
मान्यता है कि डेंगू नाम के जहरीले मच्छरों के काटने पर यह रोग पैदा होता है। जहां कहीं भी पानी जमा होती है, यह मच्छर वहीं पैदा हो जाते हैं और जिस किसी को भी काट लेते हैं, वह व्यक्ति इस बुखार से बड़ी मुश्किल से जान बचा जाता है। इन मच्छरों को मारने के लिए हमारे समाज में जगह-जगह पर जहरीला धुआं छोड़ने वाली मशीनों का प्रयोग किया जाता रहा है। खैर, वास्तविकता जो भी हो किन्तु हमारी यह मान्यता बन गयी है कि इस बुखार का कारण इन जहरीले मच्छरों का काटना ही है।
सवाल यह है कि यह मच्छर केवल उन रोगियों को ही काटते है, जो इस रोग से प्रभावित होते हैं या उनको भी काटते हैं, जिनके ऊपर इनके काटने का प्रभाव नहीं होता? यह मच्छर क्यों पैदा होते हैं और कुछ लोग इनके काटने से क्यों प्रभावित हो जाते हैं? केवल जहरीला धुआं छोड़ने से ही क्या वाकई ये मच्छर मर जाता हैं? ये सब चर्चा के विषय हैं। हो सकता है कि कुछ समय बाद डेंगू बुखार से बचने के लिए भी कोई वैक्सीन तैयार हो जाए और उसका प्रचार तथा व्यवहार देशभर में सरकार तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया जाए।
बहरहाल, बुखार चाहे कैसा भी हो, उसके पीछे कोई न कोई विशेष कारण छिपा होता है और वह विशेष कारण है शरीर में गन्दगी का जमा होना तथा उससे हमारे रक्त का दूषित होना। छोटी-छोटी बीमारियों को बार-बार दवाइयों द्वारा दबाने का ही परिणाम होता है डेंगू बुखार और इसी प्रकार से दूसरे भयानक रोग। कारण यह है कि हमारी रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है और हम रोगों के दलदल में फंस जाते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा सिध्दांत के अनुसार चिकित्सा करने पर रोग जड़ से चला जाता है और शरीर पर किसी भी प्रकार का बुरा प्रभाव भी नहीं छोड़ता। महात्मा गांधी के बड़े पुत्र को एक बार बहुत तेज बुखार हो गया था और यह लम्बे समय तक चलता रहा। गांधी जी ने बहुत सारे प्रयत्न किए किन्तु बुखार ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक दिन हार मानकर गांधी जी ने अपने पुत्र के शरीर पर बुखार बढ़ने की स्थिति में गीले कपड़े की चादर लपेट दी। उसके बाद उसके ऊपर सूखी खद्दर की चादर लपेट दी और उसके ऊपर गर्मी देने के लिए कम्बल डाल दिया और स्वयं घूमने चले गये। कुछ देर बाद जब वह वापस आये तो उन्होंने देखा कि पुत्र को बहुत पसीना आया है तथा बुखार भी बहुत कम हो गया है। गांधी जी ने अच्छी तरह गीले कपड़े से सारा पसीना पोंछकर उसके कपड़े बदल दिये और फिर बेटे को अच्छी नींद आ गयी, साथ ही साथ बुखार से भी छुटकारा मिल गया। यह है प्राकृतिक चिकित्सा का वास्तविक उपचार।
हम महात्मा गांधी को पूरे सम्मान के साथ स्मरण करते हैं, केवल इसलिए नहीं कि उन्होंने हमें आजादी दिलाई बल्कि उनमें बहुत गुण भी थे। गांधी जी एक प्राकृतिक चिकित्सक भी थे। प्राकृतिक चिकित्सा में उनका अटूट विश्वास था। सभी रोगों के लिए उनकी मान्यता थी कि प्राकृतिक द्वारा ही ठीक प्रकार से, कम खर्च पर और शरीर को बगैर कोई नुकसान पहुंचाए उपचार हो सकता है। वे चाहते थे कि इसकी शिक्षा तथा प्रसार पूरे देश में हो।
प्राकृतिक चिकित्सा डेंगू बुखार को गम्भीर तो मानती है पर लाइलाज नहीं। प्राकृतिक चिकित्सा का अनुभव है कि यह रोग पैदा होने से पहले शरीर में बहुत से दूसरे रोग जमा हो जाते हैं और जब यह रोग बाहर निकलने की कोशिश करते हैं, तब दवाइयों द्वारा इन्हें दबा दिया जाता है। उसके बाद ही गम्भीर रोग पैदा होते हैं, जिनमें डेंगू बुखार भी एक है। इसका उपचार है माथे पर बर्फ की पट्टी, गर्दन के पिछले भाग पर सूर्य की नीली किरणें डालना, सूर्य किरणों द्वारा तैयार किये हुए नीले तेल की सिर तथा माथे पर मालिश, पेट पर ठंडी मिट्टी रखना, गुनगुने पानी का अनीमा देना और हाथ-पैरों को गर्म रखने से परहेज करना। नारियल का पानी, मौसमी का रस अथवा फटे दूध का पानी उपयोग में लाना भी लाभ पहुंचाता है।
आवश्यकता इस बात की है कि हमारे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ भी ऊपर बताये उपायों का अनुसरण करें और मरीजों को लाभ पहुंचायें तथा प्राकृतिक चिकित्सा पध्दति को अपनाएं, जिससे समाज का लाभ हो और रोगी का जीवन सफलतापूर्वक सुरक्षित हो सके। इस प्रकार चिकित्सा करने पर किसी रोगी की मृत्यु इस रोग से हो, ऐसा संभभव ही नहीं।