ध्यान-साधना (Meditation Practice) स्वयं को जानने की प्रक्रिया है। चित्त का स्थिर करने की क्रिया है। चंचलता को समाप्त करने की क्रिया है। शांत-स्थिर बनने का मार्ग है ध्यान। इस जन्म के तमाम दुर्गुणों को ध्यान क्रिया से सदगुणों में परिवर्तित किया जा सकता है। यहां बतायी ध्यान की तीन सरल क्रियाएं अपना कर आप जीवन में आये परिवर्तन को अनुभव कर पायेंगे।
ध्यान (Meditation) की प्रथम क्रिया
सुबह के समय जब प्रभात की किरणें धरती पर फैलने हेतु प्रयासरत हों तब चिड़ियों का चहचहाना सुनिये। ढेर सी चिड़ियां प्रात: काल अपनी कलख से वातावरण को संगीतमय बना रही होंगी। ऐसे में किसी एक चिड़िया के स्वर को पहचानने का प्रयास करें। एक चिड़िया के स्वर को पहचानने के बाद उसी के स्वर पर स्वयं को केंद्रित करें। समस्त चिड़ियों का क्रन्दन, शोर सब यकायक समाप्त हो जायेगा। एक मात्र उसी चिड़िया का स्वर शेष रह जायेगा।
अगले चरण में उस चिड़िया के स्वर के अनुसार अपनी श्वसन क्रियाओं को नियंत्रित कर लें। जैसे ही चिड़िया चहके श्वास को अंदर खींच ले, दूसरा स्वर आते ही उस श्वास को छोड़ दें। यदि चिड़िया जल्दी जल्दी चहक रही हो तो आप भी उसी क्रम में श्वास लें एवम् छोड़े।
प्रथम चरण में कष्ट जरूर होगा, किन्तु यह प्राणायाण की ही क्रिया है। इससे आपके शरीर में ऊर्जा का निर्माण होगा जो अलाभकारी तत्वों को शरीर से निकाल देगा एवं प्राण वायु से शरीर को भर देगा। यदि पक्षी धीमे-धीमे चहक रहे हैं तो उसी क्रम में श्वास लें। इस साधना का लाभ आप स्वयं अनुभव करने लगेंगे तथा इससे आपकी तामसी प्रवृत्तियां समाप्त होंगी। आपका प्रेम पशु-पक्षियों के प्रति जागृत होगा। आपको एक नया दृष्टिकोण मिलेगा। यह क्रम जारी रखें ताकि प्रभाव स्थायी रह सके।
ध्यान (Meditation) की द्वितीय विधि
यह साधना की विधि थोड़ा काष्टकारी अवश्य है, किन्तु थोड़ी से अभ्यास से यह भी सहज हो जाती है। यह क्रिया रात-दिन कभी भी की जा सकती है। आप शांत बैठ जायें या लेट जाएं, फिर कल्पना करें- आप मंदिर जा रहे हैं या किसी अपने परिचित मित्र के घर जा रहे हैं। कैसे जायेंगे उसके पूर्व क्या क्या तैयारियां होंगी उसे आप कर लें।
जैसे कल्पना में ही स्नान कर लें, कपड़े बदलें, चप्पलें पहनें फिर सीढ़ियों उतरें। फिर उस मंदिर तक पहुंचने के मार्ग में कौन-कौन से स्थान पड़ते हैं जिसे आप देखते हैं या जानते हैं- उन सब को देखते हुए आप आगे बढ़ते जायें। प्रथम चरण में आप शायद आधे मार्ग तक ही पहुंच पायें और नींद आ जाये, फिर भी अपनी कल्पना को समाप्त न करें। धीरे-धीरे अभ्यास को और आगे बढ़ायें।
जब मंदिर में पहुंच जायें, प्रभु के दर्शन करें- कुछ देर मंदिर में ठहरें तथा फिर घर लौटें। इस समस्त क्रिया में लगभग तीन माह से अधिक का समय लगेगा, किन्तु इस क्रिया से आप में आत्मशक्ति बढ़ेगी, अवलोकन करने की शक्ति का विस्तार होगा। मंदिर के स्थान पर यदि मित्र के घर की कल्पना की हो तो उसके घर तक जायें, मित्र से मिलें, शांति के साथ कुछ समय उसके साथ गुजारें फिर घर लौटें। कल्पना शक्ति बढ़ेगी एवं आनंद का अनुभव होगा। यह क्रिया कठिन है क्योंकि मंदिर तक पहुंचते-पहुंचते कई बार आप भूल जायेंगे कि ना जाने कितने स्थानों को भूलकर आप छलांग लगाकर आगे निकल आये- आप दौड़कर पहुंच गए। ध्यान रखें कभी भी तेज गति से मंदिर तक ना पहुंचे वर्ना कभी भी मंदिर नहीं पहुंच पायेंगे। प्रभु को पाने के लिए दौड़ना जरूरी नहीं बल्कि ठहरना आवश्यक है।
ध्यान (Meditation) की तृतीय विधि
यह विधि अत्यधिक साधारण एवं सरल प्रतीत होती है, किंतु जैसे-जैसे अभ्यास प्रगाढ़ होगा आपको ज्ञात होगा कि आप एक कठिन साधना को कर रहे हैं। इसके परिणाम भी चौंकाने वाले आयेंगे।
पूर्व में आप दर्पण में स्वयं को देखें-पूरे शरीर को ध्यान से देखें फिर विचार करें शरीर का कौन सा अंग सबसे अधिक आकर्षक, सुंदर है जो आपको प्रिय लग रहा है। माना आपको अपने नेत्र अत्यधिक सुंदर लग रहे हैं तो आपने पूरे शरीर में प्रथम स्थान नेत्रों को दे दिया और साधना प्रारंभ कर दी।
प्रथम चरण में संध्या को या प्रात:काल शांत होकर बैठ जायें- कल्पना में स्वयं को देखें फिर धीरे-धीरे जो अंग आपने पसंद किया उस पर आयें यानि नेत्र पसंद किये थे तो केवल नेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें एवं सिर्फ नेत्र ही देखने का प्रयास करें। धीमे-धीमे अभ्यास बढ़ायें- अब ध्यान में केवल नेत्र ही दिखलाई देंगे। नेत्रों को देखें और अपने निकट अनुभव करें। नेत्रों के पार जाने का प्रयास करें… धीमें-धीमें नेत्र सजीव हो उठेंगे। अब नेत्र अपने धीमे से खोलें, तो सामने आपको नेत्र दिखलाई देंगे- केवल नेत्र या शरीर का जो अंग पसंद किया वह दिखलाई देगा।
इस क्रिया के बाद आपका साक्षात्कार आपसे ही हो जायेगा। प्रभु मंदिर में नहीं स्वयं के अंदर विराजमान है, ज्ञात हो जायेगा।भौतिक वस्तुएं आपके लिए एकदम नगण्य हो जायेंगे जो प्राप्ति होगी वह अमूल्य होगी। स्वयं से साक्षात्कार हो जायेगा। जब स्वयं से भेंट हो जायेगी तब बाहरी दौड़ बंद हो जायेगी। जब स्वयं से भेंट हो जायेगी फिर प्राप्ति के लिये कुछ भी शेष नहीं रह जायेगा। स्वयं से भेंट ही ईश्वर का प्राप्त करना होता है- यह तीसरी विधि की साधना पूरी होने पर ज्ञात हो जायेगा।