'क्रोध इंसान को शैतान बना देता है, क्रोध शांति को धमासान बना देता है, इस क्रोध से बचने में ही भला है बन्धु, क्रोध गुलशन को वीरान बना देता है।
मनुष्य दिन भर परिश्रम करे तो उसे थकान का अनुभव न भी हो किन्तु यदि वह कुछ पल क्रोधित हो जाए तो वह थकान का अनुभव करने लगता है। एक सुप्रसिध्द चिकित्सक का कहना है कि आवश्यकता से अधिक परिश्रम गर्मी या सर्दी, जीवनोपयोगी भोजन की कमी, गंदा रहन-सहन, सुस्ती व निर्बलता, मानव मात्र के घोर शत्रु है। इन पर सबसे बढ़कर मनुष्य पर उसके उग्र विचारों का दुष्प्रभाव है। अस्थिर चित्तवृत्ति वाले व्यक्ति एवं क्रोधी व्यक्ति प्राय: शीघ्र ही मृत्यु के शिकार हो जाते हैं।
क्रोध असहिष्णुता की हिंसक अभिव्यक्ति है। संतों ने इसे राक्षसी वृत्ति बताया है जो धर्म विरुध्द आचरण करता है। आपस्तंब धर्मसूत्र 10/4-5 में कहा गया है कि तीक्ष्ण विष वाला सांप और तेजधार वाली तलवार भी किसी व्यक्ति के लिए उतनी घातक नहीं होती, जितनी कि अपने शरीर के भीतर रहने वाला क्रोध उसके लिए विनाशकारी हैं। क्रोध विस्फोटक स्वभाव का होने के कारण सर्वनाशी और रक्त पिपासु दानव के समान है। अत: हमें इससे बचना ही नहीं चाहिए अपितु इसे समूल नष्ट कर देना चाहिए।
जैन धर्म के उत्तराध्ययन सूत्र में क्रोध के संबंध में कहा गया है- अपने आप पर भी क्रोध न करो। दूसरों पर क्रोध करना तो स्वयं पर क्रोध करने से भी अधिक हानिप्रद है। क्रोध में हुआ मनुष्य सत्य, शील और विनय का नाश कर डालता है। कुरान शरीफ में कहा गया है- ‘स्वर्ग उन लोगों के लिए है जो अपने क्रोध को वश में रखते हैं।’
संत तिरूवल्लपुर ने कहा है- क्रोध हसी की हत्या करके आपकी प्रसन्नता को नष्ट कर देता है। यदि आदमी क्रोध को समाप्त कर दे तो उसकी तमाम कामनां की तुरंत पूर्ति हो सकती है। क्रोधाग्नि मात्र क्रोधी व्यक्ति को ही नहीं अपितु समस्त परिवार को ही भस्मीभूत कर देती है।’
क्रोध के संबंध में भगवान बुध्द ने कहा है कि- जिस प्रकार खौलते हुए पानी में अपना प्रतिबिम्ब नहीं दिखता है, उसी प्रकार क्रोधन्मत व्यक्ति को किसमें उसका हित है समझ में नहीं आता है।’ इसका कारण यह है कि क्रोध मनुष्य को उतावला करके किसी भी बात को सुनने नहीं देता है।
गीता : 'शुक्रोतीहैव य' सोंढुं प्राकशरीरविमोक्षणात्।
कामक्रोधोदमव वेग स युकृ: स सुखी नर:॥'
जो मनुष्य इस शरीर में शरीर का नाश होने से पहले- पहले ही काम क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वहीं पुरुष सुखी है। मैथ्यू हेनरी ने एक ऐसे पति-पत्नी के बारे में लिखा है जो बहुत उग्र और जल्दबाज थे लेकिन उन दोनों में एक समझौता हो चुका था और वह यह था कि एक ही समय में दोनों कभी नाराज न होंगे। आप यह आश्चर्य करेंगे परन्तु केवल एक नियम पालन करने से उन दोनों का सम्पूर्ण जीवन अत्यंत सुखपूर्वक व्यतित हो गया।
प्रसिध्द यूनानी दार्शनिक पाईथागोरस ने एक बार कहा था- ‘क्रोध मूर्खता से विचार शून्य पक्षाघात की भांति शक्तिहीन कर देता है।’ क्रोध, आवेश, चढ़ने पर आदमी अर्धविक्षिप्त जैसी स्थिति में जा पहुंचता है। उसकी कल्पना, निर्णय, हरकतें सब कुछ विचित्र हो जाती है। क्रोध का आवेश जिस पर चढ़ रहा हो उसकी गतिविधियों पर ध्यानपूर्वक दृष्टि डाली जाए तो पता चलेगा कि पागलपन में सब कुछ थोड़ी ही कसर रह गई है।
अधिक क्रोध आने पर मस्तिष्कीय जैसे क्रूर कार्य कर बैठने जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गुस्से से तमतमाया चेहरा राक्षसों जैसा बन जाता है। आंखें, होंठ, नाक आदि पर गुस्से के भाव प्रत्यक्ष दिखते हैं। मुंह से अशिष्ट शब्दों का उच्चारण होने लगता है। रक्तप्रभाव की तेजी से शरीर जलने लगता है। हाथ-पैर कांपते हैं रोएं खड़े होते देखे गये हैं। क्रोध के कारण उत्पन्न होने वाली विषाक्त शर्करा पालन शक्ति के लिए सबसे खतरनाक है। यह रक्त को विकृत कर शरीर में पीलापन, नसों में तनाव, कटिशूल आदि पैदा करती हैं।
क्रोधी मां का दूध पीने से बच्चे के पेट में मरोड़ होने लगता है और हमेशा चिड़चिड़ी रहने वाली मां का दूध कभी-कभी तो इतना विषाक्त हो जाता है कि बच्चे को जीर्ण रोग हो जाता है। क्रोध से शारीरिक शक्ति का ह्रास होता है तो मानसिक शक्ति भी क्षरित होती है। क्रोध के रहने से मनुष्य की जितना शक्ति नष्ट होती है उससे यह साधारण अवस्था में नौ घंटे कड़ी मेहनत कर सकता है। शक्ति का नाश करने के साथ क्रोध शरीर और चेहरे पर अपना प्रभाव छोड़कर उसके स्वास्थ्य सौंदर्य को भी नष्ट कर देता है।
क्रोध को दूर करने के उपाय:
- धर्म का लक्षण तो अक्रोध है, सहिष्णुता, दयाभाव, क्षमा ही अक्रोध के रूप है। क्रोध तो इनका विरोधी रूप है। वस्तुत: क्रोध को अक्रोध से जीतना चाहिए। इसका अर्थ है मनुष्य को अपने भतीर सहिष्णुता, क्षमा भावना को इतना बढ़ा लेना चाहिए कि उसके आगे किसी का क्रूध्द और प्रतिकूल व्यवहार भी बौना लगने लग जाए।
- क्रोध पर विजय पाने के लिए शांत एवं नम्र बने रहना आवश्यक है।
- पानी खूब पीना तथा फलाहारी व शाकाहारी बने रहना चाहिए। अधिक नमक, मद्यपान, चटपटे मसालेदार व मांसाहारी भोजन से परहेज करना चाहिए।
- क्रोधी व्यक्ति को सर्वप्रथम यह दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि वह किसी विषय पर किसी किसी भी परिस्थिति में क्रोध नहीं करेगा। सामने वाले की कोई समस्या या कोई बात हो तो उसे धैर्यपूर्वक सुनेगा तथा उसके समाधान के प्रयास शांति से करेगा।
- यदि हमारे ऊपर कोई क्रोध करता है। प्रत्युत्तर में हम उस पर क्रोध न करे। इससे हम स्वयं भी क्रोध से बचेंगे तथा सामने वाला भी निश्चित रूप से नरम रहेगा।
- क्रोध सदैव जल्दबाजी का परिणाम होता है। जब कोई गलत कार्य होता दिखे या कोई हानि हो जाये तो उसके कारण निश्चय करने में शीघ्रता न करे।
- अच्छे फल-फूलों से युक्त उद्यान में टहलना चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों का आनन्द ले। सूर्योदय-सूर्यास्त का समय देखे।
- जाड़े के दिनों में धूप का आनन्द लें। गर्मी के दिनों में प्रात:काल व सायंकाल के समय टहलें।
- अपने प्रियजनों व पारिवारिक जनों के पास जाएं। अपने प्रियजनों मित्रों से संपर्क में रहें।